मुझे आजाद करो
इस तंग होती सोच से
इस रोज़ होती जंग से
खुद से लडती थक चुकी, आत्मा से
मुझे आजाद करो.
क्या जश्न करूँ, क्या मान धरुं
क्या आजादी का फरमान करूँ
जब स्वयं कहीं है बंधा पड़ा ; जब सोच यहीं है बंधी हुई
तुम भगत सही या गाँधी हो
इस कैद का तुम संधान करो
मुझे आज़ाद करो.
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